https://www.rohitexplore.com क्या है यूनिफॉर्म सिवल कोड बिल : उत्तराखंड समान संहिता कानून UNIFORM CIVIL CODE

क्या है यूनिफॉर्म सिवल कोड बिल : उत्तराखंड समान संहिता कानून UNIFORM CIVIL CODE


कानून      -  नियमों और विधियों का समूह होता है जो विशिष्ट क्षेत्र मे लागू होता है  कानून को दो श्रेणी मे बात गया है  सिविल लॉ , क्रिमिनल लॉ 

सिविल लॉ  - ज़मीन से जुड़ी समस्या को सिविल लॉ कहते है भारत में सिविल कानून का समानता है धर्म ओर आस्था पर बदलाव रहता है (हिंदू मुस्लिम विवाह, तलाक और बच्चों को गोद लेना कानून अलग ) होता है 

क्रिमिनल लॉ - इस कानून में हत्या, चोरी बलात्कार आदि अपराध न्याय सुनाई जाती है जो सभी के लिए एक समान लागू होता है चाहे वो किसी भी धर्म का हो यह सभी के लिए समान 


समान संहिता कानून - यूनिफार्म सिविल कोड का अर्थ है की हर धर्म जाति संप्रदाय वर्ग के लिय पूरे देश में एक ही नियम ,दूसरे शब्दों में कहें तो समान कानून का मतलब है की साथ ही सभी धार्मिक समुदाय के लिय विवाह तलाक, विरासत, गोद लेने के नियम एक ही होंगे
समान संहिता कानून का उल्लेख भारत के संविधान के भाग - 4 के अनुच्छेद 44 ( अनुच्छेद 44 को पहले 35 अनुच्छेद के नाम से जाना जाता है)

विशेष -   अनुच्छेद 14 के अंतर्गत सभी को धर्म जाति ,लिंग के आधार पर असमानता का अधिकार
            -  अनुच्छेद 15 के अनुसार देश के किसी भी नागरिक के साथ भेदभाव नही किया जा सकता 

समान संहिता कानून    

उत्तराखंड समान संहिता कानून लागू करने वाला दूसरा राज्य है इससे पहले गोवा ही एक ऐसा राज्य है जो 1961 में सबसे पहले समान संहिता कानून लागू करने राज्य बना गोवा में UCC पुर्तगाल सिविल कोड 1867 के तहत लागू है।

उद्देश्य

• महिलाओं और बाल अधिकारों को सुनिश्चित करना है। 
• महिलाओं की सशक्तिकरण के लिय जरूरी है।
• अधिकार छीनने का नही बल्कि लोगो को अधिकार देने की कुंजी है।
• एक समान संहिता कानून लागू करने से पूरे राज्य में एक ऐसे कानून का निर्माण करना है जो पूरे राज्य में एक समान लागू होगा 
• सामाजिक न्याय की दिशा में एक बड़ा कदम साबित होगा ।

विशेष बिंदु पकिस्तान, बांग्लादेश, मलेशिया,तुर्की, इंडोनेशिया जैसे मुस्लिम देशों और अमेरिका, आयरलैंड जैसे पश्चिमी के कई देशों में भी UCC लागू है
सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल 1985 में पहली बार UCC पर सुझाव दिया था 

शाह बानो बेगम केस को लेकर 1985 में समान नागरिक संहिता बनाने की मांग उठी ।

मोहम्मद अहमद खान Vs शाह बानो बेगम केस 1985

यह केस इतिहासिक फैसला माना जाता है  शाह बानो बेगम 60 वर्षीय मुस्लिम महिला थी 1932 में जाने माने Advocate  मोहम्मद अहमद खान से हुई थी लेकिन 1946 में मोहमद खान ने दूसरी शादी कर ली 1975 में  मोहम्मद खान ने बानो को अलग रहने के लिय कहा क्योंकि वो अपनी दूसरी पत्नी के साथ रहन चाहते थे बानो बेगम और उनके पांच बच्चों के पास  कोई और साधन नही था शुरुआत में मोहम्म अहमद खान कुछ रुपए देते थे फिर 1978 में बानो बेगम को तलाक दे दिए इस महिला ने इंदौर के लोकल कोर्ट में पिटीशन दाखिल कर दिया कोर्ट ने MAINTENANCE SECTION 125 Cr. P.C  के गुजरा भत्ता को मांग की
Section 125 Cr .P.C के तहत अगर पत्नी गुजार करने में  असक्षम है तो पति को शादी के दौरान या तलाक के बाद हर महीने कुछ रुपया देना होगा । लोकल कोर्ट ने बानो बेगम को हर महीने 25 रूपये देने के कहा 1st जुलाई 1980  मध्य प्रदेश के हाई कोर्ट में रिविजनल पिटीशन दाखिल किया गया कोर्ट ने 25 रूपये को बढ़ाकर 179.80 कर दिया फिर मोहम्मद अहमद खान के सुप्रीम कोर्ट पिटीशन दाखिल किया और कहा की All India Muslim Personal Law Board के अनुसार मुस्लिम पति इद्दात के दौरान ही पत्नी को गुजारा भत्ता दे सकता है।
इद्दात 3 महीने 10 दिन या बच्चे को जन्म देने तक दे सकता है पति के तलाक या मृत्यु के समय को इद्दात कहा जाता है
AIMPLB ने भी मोहम्म्म को सहयोग किया।
23 अप्रैल 1985 को मोहम्मद के पिटीशन को रद कर दिया मध्य प्रदेश के हाई कोर्ट के निर्णय को सही कहा और गुजारा भत्ता को बढ़ा दिया
और कोर्ट ने कहा की सर्कुलर क्रिमिनल प्रोसीजर कार्ट के तहत पति को जब तक मेंटेंस  भत्ता देना होगा जब तक पत्नी खुद सक्षम ना हो जाए और साथ में ये फैसला सभी पर लागू होता है चाहे वह किसी भी धर्म जाति का क्यों ना हो

समान संहिता कानून के मुख्य अव्यय है ।
• उत्तराधिकार
• विवाह
• तलाक
• गुजरा भत्ता
• बच्चे को गोद लेना

उत्तराखंड यूनिफार्म सिविल कोड

• विवाह की कानूनी आयु - पुरुष 21 आयु,महिला की 18 आयु
•  द्विविवाह पर प्रतिबंध -  दूसरी विवाह के समय जीवित पति/ पत्नी नही होनी चाहिए।
• सपिंड विवाह पर प्रतिबंध पिता माता दादा और दादी के प्रत्यक्ष रिश्ते में विवाह नहीं होनी चाहिए
 लिव इन द रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता लिविंग रिलेशनशिप को पंजीकरण कराना अनिवार्य है 
• लिव इन रिलेशनशिप से जन्मे बच्चे को कानूनी सुरक्षा मिलेगी
• संबंध समाप्त होने पर समाप्त होने पर अधिकारी को सूचना देना होगा सभी विवाहों को 60 दिन के भीतर कानूनी मान्यता मिलेगी 
• पंजीकृत नहीं होने पर 10000 जुर्माना पंजीकृत करते समय गलत जानकारी देने पर तीन माह की कैद     25000 जुर्माना
• तलाक होने की स्थिति में गुजारा भत्ता दिया जाएगा
• विधेयक प्रावधान आदिवासी समुदाय पर लागू नहीं होगा


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