चलिए हम Electoral Bond के बारे में जानते है
भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र वाला देश है जनसंख्या के हिसाब से हमें लोकतंत्र की जननी माना जाता है बिहार के लिच्छवी गणराज्य में सबसे पहले लोकतंत्र की स्थापना हुई थी लोकतंत्र में जनता के द्वारा चुने हुई सरकार आती है चुनाव में जीतने के लिए सभी पार्टियों में ओढ़ लगी रहती है चुनाव में जीत हासिल करने के लिय बहोत से खर्च किए जाते है चुनाव से जुड़े हुए बहुत से के खर्च होते हैं खर्च दो तरह के होते हैं प्रत्यक्ष खर्च और अप्रत्यक्ष खर्चे
• प्रत्यक्ष खर्च - इसमें वो खर्च आते है जो स्पष्ट रूप से दिखाई देता है जैसे कि बड़े-बड़े होर्डिंग लगाना , पर्चे बांटना, दवारों पर पार्टी का प्रचार करना, आने जाने के लिय वाहनो इस्तेमाल करना ये सभी प्रत्यक्ष खर्च में आते है।
• अप्रत्यक्ष खर्च - सोशल मीडिया,मोबाइल पर मैसेज करना , न्यूज़ पेपर में खबर देना यह सभी प्रचार में अप्रत्यक्ष खर्चे से किया जाता है इन सभी खर्च को पूरा करने के लिए राजनीतिक पार्टियां चंदा के भरोसे रहती है जो उनको आम जनता के द्वारा बिजनेसमैन के द्वारा राजनीतिक पार्टियों को चंदा मिलता है भ्रष्टाचार को कम करने के लिए , पैसों की कालाबाजारी को दूर करने के लिय Electoral Bond को लाया गया
क्या होता है इलेक्ट्रिक बोर्ड
ये एक तरह का वचन पत्र है जो राजनीतिक पार्टियों को वित्तीय मदद करता था चुनावी बॉन्ड वर्ष 2017- 2018 में अरुण जेटली के कार्यकाल में लाया गया था इलेक्टोरल बॉन्ड को 29 जनवरी 2018 में कानूनी रूप से लागू किया गया सिर्फ SBI को ही इलेक्टोरल बॉन्ड को जारी करने का आधिकार दिया गया था ELECTORAL BOND को STATE BANK OF INDIA अपने कुछ चुनिंदा शाखा से ही जारी करती है इलेक्टोरल बॉन्ड लेने वाले की कोई जानकारी नहीं होती है किसने खरीदा या फिर किसके लिए खरीदा यह एक तरह का डिमांड ड्राफ्ट था सिर्फ स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया को ही इलेक्टोरल बॉन्ड जानकारी होती थी ऐसा इसलिए क्योंकि बॉन्ड लेते समय व्यक्ति या कंपनी की KYC की जाती हैं जो आधार कार्ड और पैन कार्ड के माध्यम से किया जाता था चुनावी बॉन्ड को साल में चार बार जारी किया जाता था जनवरी ,अप्रैल ,जुलाई ,अक्टूबर 1 तारीख से 10 तारीख के बीच में इसको जारी किया जाता था यदि राजनीतिक पार्टी 15 दिन के अंदर में चुनावी बॉन्ड को पुर्णभुगतान नही करती है इलेक्टोरल बॉन्ड की सारी रकम खुद PM CARE FUND में ट्रांसफर हो जाती है चुनावी बॉन्ड एक हजार, दस हजार,एक लाख, दस लाख ओर एक करोड़ चुनावी बॉन्ड को ले सकते है लेने वाले व्यक्ति की जानकारी गुप्त रहती है सिर्फ स्टेट बैंक आफ इंडिया को ही पता होता था कि किसी व्यक्ति ने कितना चुनावी बांड लिया है क्योंकि व्यक्ति या कंपनी की केवाईसी किया जाता था
THE INDIAN EXPRESS - चुनावी बांड 4 साल में लगभग 9208 करोड़ का चंदा आया है जिसमें सिर्फ बीजेपी को 5271.97 करोड़ कांग्रेस को 952.29 करोड़ TMC से को 767.88 करोड़ रूपया बाकी अन्य पार्टी को मिला है
रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया का गवर्नर के उर्जित पटेल ने चुनावी बोर्ड पर चिंता जताया और कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड से पैसों की कालाबाजारी हो रही है ।
ASSOCIATION OF DEMOCRATIC REFORM - ADR ने भी चुनावी बॉन्ड पर चिंता जताई ADR एक ऐसी संस्था है जो चुनाव में किस तरह से पारदर्शी लाई जाए और चुनाव ठीक ढंग से किया जाए ADR ने ही सुप्रीम कोर्ट में केस किया था और कहा इसकी गहन जांच होनी चाहिए इलेक्टोरल बॉन्ड की कमी को सुप्रीम कोर्ट के सामने रखा गया जिससे सुप्रीम कोर्ट ने समझा
पहले जैसे अपने प्रॉफिट में से 7.5 % का चंदा दिया जाता था लेकिन इलेक्टोरल बॉन्ड के आने से चंदा की राशि की कोई सीमा नहीं है चुनावी बॉन्ड आने पर लॉस मेकिंग कंपनी जो लॉस में होती थी वह भी चंदा देती थी
पहले भारत में विदेश से चुनाव के समय चंदा नहीं लिया जाता था लेकिन इलेक्ट्रिक बंद आने पर विदेश से भी चंदा ले सकते थे मान लीजिए कोई भी विदेश की कंपनी भारत में बड़ी मात्रा में चंदा देती है तो वह अपनी मनपसंद की पार्टी को देकर जीता सकती है जिससे बाहर की कंपनियां भारत की इकोनॉमी को कंट्रोल कर सकती है उनके लिए फायदे की बात होती
सुप्रीम कोर्ट ने ओर पांच जजों के पीठ ने सरकार से पूछा की इलेक्टोरल बॉन्ड को लागू करने का क्या करण है।
सरकार ने दो मुख्य दलील पेश किया।
Privacy - यदि चुनावी बांड कोई व्यक्ति खरीद कर अपनी मनपसंद पार्टी को देता है यदि दूसरी पार्टी जीत जाए तो वह पार्टी बदले की भावना से उसके हित में काम नही करेगी उसे व्यक्ति के लिए ठीक नहीं होगा और उसकी पहचान बाहर आ सकती है
RIGHT TO INFORMATION - सूचना का अधिकार के अनुसार जनता को जानने का अधिकार सीमित है सुप्रीम कोर्ट ने कहा यह यह कोई विज्ञान से जुड़ा हुआ सुरक्षा से जुड़ा हुआ कोई मामला तो नहीं है जिससे जनता को नहीं मालूम होना चाहिए कोर्ट ने कहा यह तो जनता के द्वारा चुनी हुई सरकार कहां से पैसे ला रही है यह उसकी जानकारी है
अनुच्छेद 19 - A के अनुसार सभी व्यक्तियों की आजादी का उल्लंघन है सुप्रीम कोर्ट जजों ने 5 - 0 के साथ इस मामले पर प्रतिबंध लगा दिया और आज के बाद कोई भी व्यक्ति को इलेक्टोरल बॉन्ड को खरीद नहीं सकता है सुप्रीम कोर्ट के जजों ने स्टेट बैंक आफ इंडिया से कहा आज तक जितने भी चुनावी बांड खरीद गया है उसकी जानकारी Election commission of India को देना होगा सुप्रीम कोर्ट ने चार से पांच सप्ताह का टाइम दिया है और Election commission of India को 13 मार्च तक साइट पर डालने को कहा की ताकि जनता को इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी मिल सके कि किसने किसको कितना रुपए दिया है और किस पार्टी को दिया है ये जानकारी सार्वजनिक होनी चहिए
यह फैसला किसी पार्टी के पक्ष या विपक्ष में नहीं है यह फैसला भारत के पक्ष में है